भारतीय संविधान सभा: गठन, सदस्य, भूमिका और ऐतिहासिक तथ्य | Constituent Assembly of India in Hindi

 

Constituent Assembly of India, polity notes in hindi

भारतीय संविधान सभा (Constituent Assembly of India) गठन, सदस्य, भूमिका और ऐतिहासिक तथ्य

प्रस्तावना:

भारतीय संविधान सभा हमारे देश की वह ऐतिहासिक संस्था थी, जिसने स्वतंत्र भारत के लिए विश्व का सबसे विस्तृत लिखित संविधान तैयार किया है। इस सभा ने न केवल संविधान का निर्माण किया है, बल्कि भारत को एक लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और गणराज्य राष्ट्र के रूप में दिशा भी दी है। संविधान सभा का कार्य भारतीय इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक माना जाता है। हर भारतीय को इस सभा का खुले और सच्चे मन से शुक्रिया अदा करना चाहिए।

आज हम जानने की कोशिश करेंगे की भारतीय संविधान सभा क्या है,

इस का गठन कैसे हुए था, संविधान सभा में किसकी क्या भूमिका रही है इत्यादि|

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संविधान सभा का गठन कैसे हुआ था?

भारतीय संविधान सभा का गठन “कैबिनेट मिशन योजना, 1946 के अंतर्गत हुआ था।

 

संविधान सभा का चुनाव प्रत्यक्ष नहीं, बल्कि प्रांतीय विधानसभाओं के माध्यम से हुआ था।

इस सभा में मुस्लिम लीग और कांग्रेस दोनों को प्रतिनिधित्व दिया गया था।

साथ ही देशी रियासतों को भी सदस्य नामित करने का अधिकार दिया गया था।

 

महत्वपूर्ण बात: कैबिनेट मिशन योजना क्या है?

कैबिनेट मिशन योजना साल (1946) ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण और संविधान सभा के गठन के उद्देश्य से प्रस्तुत की गई यह एक महत्वपूर्ण योजना थी।

इस मिशन में ब्रिटेन के तीन मंत्री 1.लॉर्ड पैथिक लॉरेंस, 2.सर स्टैफर्ड क्रिप्स और 3.ए. वी. अलेक्जेंडर शामिल थे।

इस योजना का मुख्य उद्देश्य भारत की एकता को बनाए रखना और भारतीयों को अपना संविधान स्वयं बनाने का अधिकार देना था।

इसके अंतर्गत एक संविधान सभा के गठन का प्रस्ताव रखा गया था, जिसके सदस्य प्रांतीय विधानसभाओं द्वारा चुने जाने थे।

संविधान सभा को भारत का संविधान बनाने का पूर्ण अधिकार दिया गया था।

योजना में भारत को तीन समूहों (A, B और C) में बाँटने का प्रावधान था, ताकि मुस्लिम बहुल और हिंदू बहुल क्षेत्रों की चिंताओं को आसानी से संतुलित किया जा सके।

केंद्र को केवल रक्षा, विदेश नीति और संचार जैसे सीमित विषय ही दिए गए थे।

 

कैबिनेट मिशन योजना के आधार पर ही 1946 में संविधान सभा का गठन हुआ, जिसने आगे चलकर भारतीय संविधान का निर्माण किया।


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संविधान सभा की पहली बैठक कब हुई थी ?

तारीख: 9 दिसंबर 1946 के दिन पहली बैठक हुई थी

स्थान: सेंट्रल हॉल, नई दिल्ली में

अस्थायी अध्यक्ष: डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा जी।

स्थायी अध्यक्ष: डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी।

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संविधान सभा में कुल कितने सदस्य थे?

प्रारंभिक स्थिति साल (1946) में

 

कुल सदस्य: 389 लोग

ब्रिटिश भारत से: 292 लोग

देशी रियासतों से: 93 लोग

 मुख्य आयुक्त क्षेत्र से: 4 लोग

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संविधान निर्माण में कितना समय लगा?

कुल समय: 2 वर्ष 11 माह 18 दिन लगे

9 दिसंबर 1946 से 26 नवंबर 1949 तक

कुल 11 सत्र हुए

लगभग 165 बैठकें हुई थीं

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भारतपाक विभाजन के बाद (1947)

कुल सदस्य: 299

पाकिस्तान के लिए चुने गए सदस्य अलग हो गए थे।

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संविधान सभा में पुरुष और महिला सदस्यों की संख्या

 

पुरुष सदस्य:

लगभग 284 पुरुष सदस्य

 

महिला सदस्य:

कुल 15 महिला सदस्य

 

यह उस समय के सामाजिक ढाँचे को देखते हुए एक ऐतिहासिक उपलब्धि मानी जाती है।

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संविधान सभा की सभी महिला सदस्यों के सही नाम व उनकी भूमिकाएं:

 

नीचे संविधान सभा की सभी 15 महिला सदस्यों के नाम और उनके प्रमुख योगदान दिए जा रहे हैं:

 

सरोजिनी नायडू: स्वतंत्रता सेनानी, महिला अधिकारों की आवाज बनीं

विजयलक्ष्मी पंडित: कूटनीतिज्ञ, मानवाधिकार पर ज़ोर दिया

सुचेता कृपलानी: संविधान पर बहस में सक्रिय भागीदारी निभाई

राजकुमारी अमृत कौर: स्वास्थ्य और सामाजिक सुधार पर योगदान दिया

दुर्गाबाई देशमुख: सामाजिक न्याय और महिला शिक्षा पर ज़ोर दिया

हंसा मेहता: समान नागरिक अधिकारों की पक्षधर रही हैं

अम्मू स्वामीनाथन: स्त्री स्वतंत्रता और समानता पर ज़ोर दिया

रेणुका राय: हिंदू कोड बिल से जुड़े प्रस्ताव पेश किए

बेगम ऐजाज रसूल: मुस्लिम महिलाओं का प्रतिनिधित्व किया

दक्षायणी वेलायुधन: दलित महिलाओं की आवाज बनी

कमला चौधरी: साहित्य और सामाजिक सुधार के लिए योगदान दिया

लीला रॉय: महिला सशक्तिकरण के लिए योगदान दिया

पूर्निमा बनर्जी: राष्ट्रवादी विचार रखती थीं

मालती चौधरी: गांधीवादी कार्यकर्ता के रूप में कार्य कीया

श्रीमती जयरामदास दौलतराम: सामाजिक समरसता पर योगदान दिया

 

 

संविधान सभा के प्रमुख पुरुष सदस्य और उनकी भूमिकाएं:

 

डॉ. भीमराव अंबेडकर:

ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष और भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार

 

2. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद:

संविधान सभा के अध्यक्ष, बाद में भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने

 

3. पंडित जवाहरलाल नेहरू:

उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया, संविधान की मूल आत्मा के मार्गदर्शक रहे हैं

 

4. सरदार वल्लभभाई पटेल

संघीय व्यवस्था और रियासतों के एकीकरण में भूमिका निभाई है

 

5. मौलाना अबुल कलाम आज़ाद:

शिक्षा और अल्पसंख्यक अधिकारों के पक्षधर, भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री


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संविधान सभा के मुख्य तथ्य (Important Facts)

 

संविधान को 26 नवंबर 1949 को अंगीकृत किया गया था

26 जनवरी 1950 को पुरे भारत के लिए लागू किया गया था

प्रारंभ में संविधान में कुल 395 अनुच्छेद थे

यह दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है

हस्तलिखित मूल संविधान हिंदी और अंग्रेज़ी में है

 

 

संविधान सभा की प्रमुख समितियाँ

समिति

अध्यक्ष

ड्राफ्टिंग कमेटी

डॉ. बी.आर. अंबेडकर

संघीय शक्ति समिति

पंडित जवाहरलाल नेहरू

प्रांतीय संविधान समिति

सरदार वल्लभ भाई पटेल

मौलिक अधिकार समिति

जे.बी. कृपलानी

अल्पसंख्यक समिति

सरदार पटेल

 

अब आइए इन सभी समितियों के बारे में समझते हैं

1. ड्राफ्टिंग कमेटी

 

 

ड्राफ्टिंग कमेटी का मुख्य कार्य था भारतीय संविधान के अंतिम प्रारूप (Draft) को तैयार करना था।

संविधान सभा की विभिन्न समितियों द्वारा दिए गए सुझावों, प्रस्तावों और सिफारिशों को कानूनी और संवैधानिक भाषा में बदलना इसी कमेटी की जिम्मेदारी रही है।

यह कमेटी यह सुनिश्चित करती थी कि संविधान के सभी अनुच्छेद आपस में तार्किक रूप से जुड़े हों और उनमें कोई विरोधाभास न हो।

इसके अतिरिक्त, संविधान सभा में होने वाली बहसों के आधार पर आवश्यक संशोधन करना, भाषा को स्पष्ट और सुसंगत बनाना तथा संविधान को व्यवहारिक बनाना भी इसी कमेटी का कार्य था।

यह कमेटी भारतीय संविधान को एक सुव्यवस्थित, लिखित और लागू करने योग्य दस्तावेज बनाने में निर्णायक भूमिका निभाती है। आज का भारतीय संविधान पूरी तरह से इसी कमेटी के कार्य का प्रतिफल है।

 

2. संघीय शक्ति समिति

संघीय शक्ति समिति का प्रमुख कार्य केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों के विभाजन को निर्धारित करना था।

इस समिति ने यह तय किया कि कौन-कौन से विषय केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में होंगे और किन विषयों पर राज्यों को अधिकार मिलेगा, सुनिश्चित करना था।

इस समिति का उद्देश्य भारत को एक मजबूत संघीय राज्य बनाना था, जिसमें राष्ट्रीय एकता बनी रहे और साथ ही राज्यों को भी पर्याप्त स्वायत्तता प्राप्त हो।

रक्षा, विदेश नीति, संचार जैसे विषयों को केंद्र के अधीन रखने और शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे विषयों में राज्यों की भूमिका तय करने का कार्य इसी समिति ने किया है।

इस समिति की सिफारिशों के आधार पर संघ, राज्य और समवर्ती सूची की अवधारणा विकसित हुई, जो आज भारतीय संघीय व्यवस्था की आधारशिला मानी जाती है।

 

3. प्रांतीय संविधान समिति

प्रांतीय संविधान समिति का कार्य भारत के प्रांतों (वर्तमान राज्यों) की शासन प्रणाली और संरचना को सही तरीके से निर्धारित करना था।

इस समिति ने यह विचार किया कि प्रांतों में कार्यपालिका, विधायिका और प्रशासन कैसे काम करेंगे?।

इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि प्रांतीय सरकारें लोकतांत्रिक हों और जनता के प्रति हमेशा उत्तरदायी रहें।

प्रांतों को किन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार होगा, उनके प्रशासनिक ढांचे कैसे होंगे और केंद्र के साथ उनके संबंध कैसे होंगे इन सभी मुद्दों पर इस समिति ने महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं।

इस समिति ने भारत में एकात्मकता और संघीयता के संतुलन को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई है।

इसके कार्यों के कारण ही भारत में मजबूत राज्यों के साथ एक संगठित राष्ट्र की व्यवस्था संभव हो सकी है।


4. मौलिक अधिकार समिति

मौलिक अधिकार समिति का मुख्य उद्देश्य भारतीय नागरिकों को मूलभूत अधिकारों की संवैधानिक गारंटी प्रदान करना था।

इस समिति ने यह तय किया है कि स्वतंत्र भारत में नागरिकों को कौन-कौन से अधिकार दिए जाएँगे ताकि वे सम्मानजनक और स्वतंत्र जीवन जी सकें।

इस समिति ने समानता, स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आज़ादी, धर्म की स्वतंत्रता और शोषण के विरुद्ध संरक्षण जैसे अधिकारों पर गहराई से विचार किया है।

इसका उद्देश्य राज्य की शक्ति पर नियंत्रण रखना और नागरिकों को मनमाने शासन से सुरक्षा प्रदान करना था।

इस समिति की सिफारिशों के आधार पर ही मौलिक अधिकारों को संविधान में शामिल किया गया था, जो आज भारतीय लोकतंत्र की आत्मा माने जाते हैं और नागरिकों को न्यायपालिका के माध्यम से संरक्षण प्रदान करते हैं।

 

5. अल्पसंख्यक समिति

अल्पसंख्यक समिति का कार्य भारत के धार्मिक, भाषाई और सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों और हितों की रक्षा से संबंधित था।

इस समिति का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि स्वतंत्र भारत में कोई भी समुदाय स्वयं को असुरक्षित या उपेक्षित महसूस न कर सके।

इस समिति ने अल्पसंख्यकों को समान नागरिक अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता और अपनी संस्कृति के संरक्षण की संवैधानिक गारंटी देने पर विचार किया, और उसके लिए कार्य किए।

साथ ही, यह भी ध्यान रखा गया कि अल्पसंख्यक अधिकार राष्ट्रीय एकता के विरुद्ध न हो जाएँ।

इस समिति के कार्यों से भारत का संविधान समावेशी और धर्मनिरपेक्ष बना, जिसमें विविधता को सम्मान दिया गया और सभी समुदायों को समान संरक्षण प्रदान किया गया है।

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निष्कर्ष

भारतीय संविधान सभा केवल एक संस्था नहीं, बल्कि आधुनिक भारत की आत्मा भी है। इसमें शामिल पुरुष और महिला सदस्यों ने अपने विचारों, अनुभवों और दूरदर्शिता से हमें ऐसा संविधान बना कर दिया, जो आज भी भारत को एकजुट रखे हुए है। संविधान सभा का योगदान भारतीय लोकतंत्र का आधार स्तंभ है।


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