Constitution of India Article-13 GK MCQ in Hindi

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अनुच्छेद 13 (Article 13) : मौलिक अधिकारों की संवैधानिक सुरक्षा

भूमिका:

भारतीय संविधान को विश्व के सबसे विस्तृत और लिखित संविधानों में गिना जाता है। इसका सबसे सशक्त और जीवंत हिस्सा भाग–III (मौलिक अधिकार) ही है, जो नागरिकों को राज्य की मनमानी से पूरी तरह से सुरक्षा प्रदान करता है। इन्हीं मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 13 को एक मजबूत ढाल के रूप में शामिल किया है। अनुच्छेद 13 यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी कानून, परंपरा या राज्य की कार्रवाई मौलिक अधिकारों के विरुद्ध न जाए। यही कारण है कि अनुच्छेद 13 को मौलिक अधिकारों का संरक्षक कहा गया है।

नोट: इस लेख में हम अनुच्छेद 13 का अर्थ, दायरा, उपबंध, न्यायिक व्याख्या, सिद्धांत, महत्व और परीक्षा की दृष्टि से इसकी उपयोगिता को विस्तार से समझेंगे।

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अनुच्छेद 13 का शाब्दिक अर्थ क्या है?

अनुच्छेद 13 का मूल उद्देश्य यह है कि:

संविधान लागू होने से पहले बने कानून यदि मौलिक अधिकारों से असंगत होते हैं, तो वे उस असंगति की सीमा तक शून्य होंगे।

संविधान लागू होने के बाद राज्य कोई ऐसा कानून नहीं बना सकता जो मौलिक अधिकारों को समाप्त या सीमित कर दे।

सरल शब्दों में, अनुच्छेद 13 मौलिक अधिकारों की सर्वोच्चता को स्थापित करता है।

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अनुच्छेद 13 की संरचना

अनुच्छेद 13 को मुख्य रूप से चार भागों में बाँटा गया है:

  1.  अनुच्छेद 13(1) में
  2. अनुच्छेद 13(2) में
  3. अनुच्छेद 13(3) में और
  4. अनुच्छेद 13(4) में

आइए इन सभी को विस्तार से समझते हैं।

अनुच्छेद 13(1): पूर्व-संवैधानिक कानून:

अनुच्छेद 13(1) उन कानूनों से संबंधित है जो संविधान लागू होने से पहले बनाए गए थे।

इसके अनुसार:

  • यदि संविधान से पहले बना कोई कानून मौलिक अधिकारों से असंगत है, तो वह असंगति की सीमा तक शून्य होगा, जैसा पहले ही बताया गया है। 
  • इसका अर्थ है...
  • ऐसे कानून पूरी तरह समाप्त नहीं होते।
  • वे केवल उतने हिस्से में अप्रवर्तनीय (unenforceable) हो जाते हैं, जितने हिस्से में वे नागरिकों के मौलिक अधिकारों से टकराते हैं।
  • यहीं से Doctrine of Eclipse (ग्रहण का सिद्धांत) लागू होता है।

Doctrine of Eclipse (ग्रहण का सिद्धांत)

इस सिद्धांत के अनुसार:

  • कोई पूर्व-संवैधानिक कानून यदि मौलिक अधिकारों से टकराता है, तो वह पूरी तरह समाप्त नहीं किया जाता। बल्कि
  • वह कानून मौलिक अधिकारों की छाया में चला जाता है।
  • यदि भविष्य में संविधान संशोधन द्वारा उस मौलिक अधिकार को हटा दिया जाए, तो वह कानून पुनः प्रभावी बनाया जा सकता है।

यह सिद्धांत न्यायालय द्वारा विकसित किया गया है और अनुच्छेद 13(1) की व्याख्या का महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। 

अनुच्छेद 13(2): राज्य पर प्रतिबंध

अनुच्छेद 13(2) भविष्य की दिशा तय करता है। इसके अनुसार:

 राज्य कभी भी ऐसा कोई कानून नहीं बनाएगा जो मौलिक अधिकारों को समाप्त या सीमित करता हो।

यदि राज्य ऐसा कोई कानून बनाता है, तो वह शून्य (Void) होगा।

यहाँ राज्यका अर्थ...

अनुच्छेद 12 के अनुसार राज्य में शामिल होते हैं:

  1. केंद्र सरकार
  2. राज्य सरकारें
  3. संसद
  4. राज्य विधानमंडल
  5. सभी स्थानीय और अन्य प्राधिकरण 

अनुच्छेद 13 में “Void” का अर्थ 

यहाँ यह समझना बहुत जरूरी है कि यहाँ “Void” का अर्थ क्या होता है:

  •  इसका अर्थ यह नहीं है कि कानून अस्तित्वहीन हो जाता है।
  • इसका अर्थ यह है कि वह कानून अप्रवर्तनीय (inoperative) हो जाता है।
  •  न्यायालय कभी भी ऐसे कानून को लागू नहीं करेगा।
  • यह अवधारणा हमें संविधान की लचीलापन और न्यायिक विवेक को दर्शाती है।

अनुच्छेद 13(3)(a): ‘कानूनकी परिभाषा

अनुच्छेद 13(3)(a) के अनुसार कानूनमें शामिल होते हैं:

  1. अध्यादेश (Ordinance)
  2. आदेश (Order)
  3. नियम (Rules)
  4. उपनियम (Regulations)
  5. अधिसूचनाएँ (Notifications)
  6. प्रथा या रूढ़ि (Custom or Usage) जिनमें कानून का बल हो

अर्थात् केवल संसद द्वारा पारित अधिनियम ही नहीं, बल्कि हर वह व्यवस्था जो कानून का रूप लेती है, अनुच्छेद 13 के दायरे में ही आती है।

अनुच्छेद 13(3)(b): “Laws in Force”

“laws in force” से क्या आशय है: 

  • ऐसे सभी कानून जो संविधान के प्रारंभ से पहले बनाए गए हों
  • जो किसी सक्षम विधानमंडल या प्राधिकारी द्वारा बनाए गए हों
  • और जिन्हें बाद में भी निरस्त न किया गया हो
  • यह परिभाषा अनुच्छेद 13(1) को स्पष्ट करती है।

अनुच्छेद 13(4): संविधान संशोधन

अनुच्छेद 13(4) 24वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया है। इसके अनुसार:

अनुच्छेद 13 की कोई भी बात अनुच्छेद 368 के अंतर्गत किए गए संविधान संशोधन पर लागू नहीं होगी।

इसका अर्थ है कि संविधान संशोधन को अनुच्छेद 13 के आधार पर कभी भी शून्य घोषित नहीं किया जा सकता।


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अनुच्छेद 13 और न्यायिक समीक्षा

अनुच्छेद 13 न्यायिक समीक्षा की आधारशिला है। इसके माध्यम से:

न्यायालय यह जाँच करता है कि कोई कानून मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है या नहीं, इसकी जांच हो जाती है।

यदि उल्लंघन पाया जाता है, तो उसी समय कानून को अप्रवर्तनीय घोषित किया जा सकता है।

यही कारण है कि अनुच्छेद 13 को न्यायपालिका की शक्ति का संवैधानिक आधार माना गया है।

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अनुच्छेद 13 का क्या महत्व है?

अनुच्छेद 13 का महत्व निम्नलिखित बिंदुओं में आसानी से समझा जा सकता है:

  1. यह मौलिक अधिकारों की सर्वोच्चता सुनिश्चित करता है
  2. यह राज्य की निरंकुश शक्ति पर रोक लगाता है
  3. यह न्यायिक समीक्षा को संवैधानिक आधार देता है
  4. यह संविधान को जीवंत दस्तावेज बनाता है
  5. यह नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा करता है

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परीक्षा की दृष्टि से अनुच्छेद 13 का क्या महत्त्व है?

UPSC, State PCS, CUET, विश्वविद्यालय परीक्षाओं में अनुच्छेद 13 से संबंधित प्रश्न बार-बार पूछे जाते हैं, जैसे की:

  • Doctrine of Eclipse
  • Void और Unenforceable का अंतर
  • Laws in force की परिभाषा
  • अनुच्छेद 13 और संविधान संशोधन

इसलिए यह विषय भारतीय राजनीति का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अध्याय माना जाता है।

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निष्कर्ष:

अनुच्छेद 13 भारतीय संविधान का वह स्तंभ है जिस पर हमारे मौलिक अधिकारों की पूरी इमारत टिकी हुई है। यह न केवल पुराने कानूनों को संविधान के अनुरूप बनाता है, बल्कि भविष्य में राज्य की शक्ति को भी पूरी तरह से नियंत्रित करता है। न्यायपालिका को कानूनों की समीक्षा की शक्ति देकर, अनुच्छेद 13 लोकतंत्र, स्वतंत्रता और संवैधानिक सर्वोच्चता को सुदृढ़ करता है।

बिलकुल यह कहा जा सकता है कि यदि मौलिक अधिकार संविधान की आत्मा हैं, तो अनुच्छेद 13 उनका प्रहरी है।


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