Father of Indian Sociology G.S. Ghurye Notes in Hindi

भारतीय समाजशास्त्री जी.एस. घुर्ये , sociology notes in hindi
भारतीय समाजशास्त्री जी.एस. घुर्ये (G.S. Ghurye): जीवन, शोध, समाजशास्त्रीय योगदान और प्रमुख कृतियाँ

प्रस्तावना (Introduction):

भारतीय समाजशास्त्र के इतिहास में जिन विद्वानों ने इस विषय को एक ठोस शैक्षणिक आधार दिया है, उनमें प्रोफेसर श्री गोविंद सदाशिव घुर्ये (G.S. Ghurye) साहेब का नाम अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है। इसके साथ ही उन्हें भारतीय समाजशास्त्र का जनक (Father of Indian Sociology) भी कहा जाता है। उन्होंने भारतीय समाज, संस्कृति, जाति व्यवस्था, जनजाति, धर्म, कला और सभ्यता पर गहन शोध किया और समाजशास्त्र को भारत की जमीनी वास्तविकताओं से जोड़ा है।

नोट: यह लेख G.S. Ghurye साहेब के जीवन परिचय, शिक्षा, शोध कार्य, समाजशास्त्र में योगदान, प्रमुख सिद्धांत, पुस्तकें और भारतीय समाज पर उनके प्रभाव को विस्तार से प्रस्तुत करता है

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जी.एस. घुर्ये का संक्षिप्त परिचय:

🔹पूरा नाम: गोविंद सदाशिव घुर्ये

🔹जन्म: 12 दिसंबर 1893

🔹जन्म स्थान: मालवन, महाराष्ट्र

🔹मृत्यु: 19 दिसंबर 1983

🔹 कार्य क्षेत्र: समाजशास्त्र, मानवशास्त्र

🔹विशेष पहचान: भारतीय समाजशास्त्र के संस्थापक, 🔹बॉम्बे विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग के पहले प्रोफेसर।

 

गोविंद सदाशिव घुर्ये का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:

जी.एस. घुर्ये का जन्म एक शिक्षित और सांस्कृतिक परिवेश वाले परिवार में हुआ था। बचपन से ही उनमें इतिहास, संस्कृति और समाज को समझने की गहरी रुचि थी।

 

गोविंद सदाशिव घुर्ये की शिक्षा यात्रा:

🔹प्रारंभिक शिक्षा मालवन में की।

🔹बी.ए. और एम.ए. बॉम्बे विश्वविद्यालय से की।

🔹उच्च शिक्षा इंग्लैंड (University of Cambridge) से प्राप्त की।

🔹प्रसिद्ध समाजशास्त्री W.H.R. Rivers के मार्गदर्शन में शोध क्यों

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान घुर्ये ने पाश्चात्य समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण को सही तरीके से समझा, लेकिन उन्होंने इसे ज्यों का त्यों भारत में लागू करने के बजाय भारतीय समाज के अनुरूप ढाला, ताकि आने वाली पीढ़ी भी आसानी से समझ सके।

भारत लौटने के बाद अकादमिक जीवन:

भारत लौटने के बाद G.S. Ghurye को बॉम्बे विश्वविद्यालय (University of Bombay) में समाजशास्त्र विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, उन्होंने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया।

उपलब्धियाँ:

🔹बॉम्बे विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग की स्थापना।

🔹लगभग 35 वर्षों तक अध्यापन।

🔹सैकड़ों शोधार्थियों का मार्गदर्शन।

🔹भारतीय समाजशास्त्र को एक स्वतंत्र शैक्षणिक विषय के रूप में स्थापित किया।

समाजशास्त्र पर लिखी हमारी इस पोस्ट को भी ज़रूर पढ़िए समाजशास्त्र (Sociology) क्या है? महत्व, इतिहास, शाखाएँ और पूरी जानकारी

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जी.एस. घुर्ये का समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण:

घुर्ये का दृष्टिकोण भारतीय केंद्रित (Indological Approach) था। वे मानते थे कि...

📍“भारतीय समाज को समझने के लिए भारतीय इतिहास, संस्कृति, धर्म और परंपराओं का अध्ययन बहुत ही आवश्यक है।

 

उनकी विशेषताएँ:

🔹भारतीय ग्रंथों का समाजशास्त्रीय अध्ययन किया।

🔹परंपरा और आधुनिकता का संतुलन।

🔹समाज को ऐतिहासिक दृष्टि से देखने की प्रवृत्ति।

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जाति व्यवस्था पर घुर्ये का विचार क्या थे?

प्रमुख कृति: Caste and Race in India

यह पुस्तक भारतीय जाति व्यवस्था पर लिखी गई है जो कि सबसे प्रभावशाली पुस्तकों में से एक मानी जाती है।

 

जाति के प्रमुख लक्षण (घुर्ये के अनुसार)

1. समाज का खंडों में विभाजन किया

2. ऊँच-नीच की भावना को गहराई से समझा

3. खान-पान और विवाह संबंधी प्रतिबंध पर शोध दिया

4. जन्म आधारित पेशा क्या होता है इसे समझा

5. सामाजिक दूरी के कारणों का पता लगाया

घुर्ये ने जाति को केवल सामाजिक नहीं बल्कि **ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संस्था माना है।

 

जनजातियों पर घुर्ये का दृष्टिकोण क्या है?

घुर्ये जनजातियों को भारतीय समाज से अलग बिलकूल नहीं मानते थे।

उनके प्रमुख विचार इस प्रकार हैं...

🔹जनजातियाँ पिछड़े हिंदू हैं, अलग समाज नहीं है

🔹उन्हें मुख्यधारा से जोड़ना चाहिए, ताकि उनका भी विकास हो सके

🔹पृथकता की नीति का विरोध है

प्रमुख पुस्तक

The Scheduled Tribes

महान समाजशास्त्री पर लिखी हमारी इस पोस्ट को भी ज़रूर पढ़िए Auguste Comte: समाजशास्त्र के जनक जीवन, सिद्धांत, योगदान और महत्व |

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धर्म और संस्कृति पर घुर्ये के क्या विचार हैं?

घुर्ये ने भारतीय धर्म को केवल आस्था नहीं बल्कि सामाजिक संस्था के रूप में देखा है।

मुख्य बिंदु

🔹 हिंदू धर्म की विविधता को गहराई से समझा और जाना

🔹 धार्मिक प्रतीकों का सामाजिक महत्व क्या है इसे समझा

🔹 मानव जीवन में संस्कारों की भूमिका समझा

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कला, स्थापत्य और संस्कृति पर घुर्ये का क्या योगदान है?

घुर्ये उन गिने-चुने समाजशास्त्रियों में हैं जिन्होंने कला और संस्कृति को समाजशास्त्र का हिस्सा बनाया है।

उनकी प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार है...

🔹 Indian Sadhus

🔹 Art and Society

🔹 Indian Costume

उन्होंने हमें बताया कि कला समाज की संरचना को कैसे प्रतिबिंबित करती है।

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ग्रामीण और शहरी समाज पर अध्ययन

घुर्ये ने भारत के ग्रामीण जीवन, संयुक्त परिवार, विवाह प्रणाली पर भी गहन अध्ययन किया है।

उनके प्रमुख विषय इस प्रकार हैं....

🔹 संयुक्त परिवार का विघटन

🔹 औद्योगीकरण का प्रभाव

🔹 शहरीकरण और सामाजिक परिवर्तन

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जी.एस. घुर्ये की प्रमुख पुस्तकों की सूचि इस प्रकार है

  1. Caste and Race in India
  2. Indian Sadhus
  3. Social Tensions in India
  4. Art and Society
  5. Indian Costume
  6. The Scheduled Tribes
  7. Culture and Society

ये पुस्तकें आज भी समाजशास्त्र को पढ़ने, समझने वालों के साथ साथ UPSC, NET, State PCS के छात्रों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

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भारतीय समाजशास्त्र में योगदान

🔹 समाजशास्त्र में भारतीय दृष्टिकोण की स्थापना की

🔹 समाजशास्त्र को भारतीय संदर्भ में ढाला

🔹 जाति, जनजाति और संस्कृति पर मौलिक शोध किए

🔹 समाजशास्त्रीय अध्ययन को बहुआयामी बनाया

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आलोचनाएँ (Criticism):

हालाँकि घुर्ये महान विद्वान थे, फिर भी उनकी कुछ आलोचनाएँ हुईं हैं

🔹 जनजातियों को हिंदू समाज में मिलाने की नीति पर विरोध किया गया

🔹 परंपरा पर अधिक जोर

🔹 आधुनिक समाजशास्त्रीय पद्धतियों की कमी

इन सब के बाद फिर भी, उनकी बौद्धिक विरासत अमूल्य है।

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जी.एस. घुर्ये की विरासत और प्रभाव

🔹 भारतीय समाजशास्त्र की नींव

🔹 आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शन

🔹 आज भी पाठ्यक्रमों में प्रमुख स्थान

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निष्कर्ष (Conclusion):

जी.एस. घुर्ये केवल समाजशास्त्री नहीं, बल्कि भारतीय समाज के व्याख्याकार थे। उन्होंने समाज को उसकी जड़ों से समझने की कोशिश की और भारतीय समाजशास्त्र को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई। यदि भारतीय समाज को गहराई से समझना है, तो G.S. Ghurye के विचारों का अध्ययन अनिवार्य है।

समाजशास्त्र के सबसे चर्चित चिन्तक पर लिखी हमारी पोस्ट को ज़रूर पढ़िए  Karl Marx: समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में उनके विचार, सिद्धांत और योगदान

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