उम्रकैद के बाद भी कुलदीप सिंह सेंगर को जमानत, न्याय व्यवस्था पर फिर उठे सवाल
नई दिल्ली।
उन्नाव रेप केस एक बार फिर से चर्चा में है। नाबालिग लड़की से बलात्कार के दोषी और पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दिल्ली हाई कोर्ट से जमानत मिलने के बाद देश की न्याय व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
ज़ाहिर सी बात है इतने घिनौने अपराध करने वाले को अदालत जमानत कैसे दे सकती है। यह वही मामला है जिसमें न सिर्फ एक नाबालिग लड़की के साथ रेप हुआ था, बल्कि उसके पिता की पुलिस हिरासत में संदिग्ध मौत, परिवार पर हमले और गवाहों को डराने के आरोप भी सामने आए थे। अदालत इतना सब जानते के बावजूद अपराधी की बेल मंजूर कर देती है।
कौन है कुलदीप सिंह सेंगर?
कुलदीप सिंह सेंगर एक ऐसा शख्स जो मामूली नही है। बल्कि वह एक पब्लिक सर्वेंट है, एक चुना हुआ विधायक जो कि सत्ताधारी दल का है। आसान शब्दों में देश में जिस पार्टी (बीजेपी) की सरकार है उस पार्टी का एमएलए है।
यह नारा भारतीय जनता पार्टी का ही है
"बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" लेकिन कैसे ? किस्से?
जब जनता की आवाज़ सुनने वाला हो जनता का गला घोंट दे। बच्चियों की इज़्ज़त लूट ले, ऐसे यह नारा फ़िज़ूल लगता है।
उसके ऊपर एक नाबालिग लड़की के रेप का इल्जाम लगता है।
कुलदीप सिंह सेंगर कोई साधारण आरोपी नहीं था। बल्कि वह उत्तर प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी का चुना हुआ विधायक था। यानी एक ऐसा जनप्रतिनिधि, जिस पर कानून की रक्षा की जिम्मेदारी होती है, वही कानून तोड़ने का आरोपी बना है।
नाबालिग से रेप और परिवार पर कहर:
2017 में एक नाबालिग लड़की ने आरोप लगाया था कि कुलदीप सिंह सेंगर ने उसके साथ बलात्कार किया है। पुलिस ने पीड़िता की बात नहीं सुनी, जब लड़की के परिवार ने आवाज उठाई, तो उन पर भी दबाव बनाया गया। पीड़िता के पिता को एक झूठे केस में गिरफ्तार कर लिया गया और पुलिस हिरासत में बुरी तरह प्रताड़ित किया गया, पुलिस द्वारा इतना ज़ुल्म किया गया कि पिता के पेट को आंतें फट गई, जिससे उनकी मौत हो गई।
पिता के मौत के बाद लड़की के चाचा और ताऊ को भी पीटा गया। जब पीड़िता अपने वकील और रिश्तेदार के साथ कार से जा रही थी, तब एक ट्रक ने उनकी कार को टक्कर मार दी। इस हादसे में पीड़िता गंभीर रूप से घायल हुई और लंबे समय तक कोमा में रही, जबकि उसके एक रिश्तेदार की मौत हो गई। ऐसा माना जाता है कि यह कोई हादसा नहीं था, बल्कि एक साज़िश थी, जिसमें अपराधी नाकाम रहे।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप:
आखिर कार मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा। मामले की गंभीरता और अपराधी के ताकत और सत्ता के समर्थन को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि केस की सुनवाई उत्तर प्रदेश से बाहर दिल्ली में होगी और सारी प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चलेगी। साथ ही पीड़िता को सुरक्षा, मुआवजा और रहने की व्यवस्था देने के निर्देश भी दिए गए थे।
2019 में आया ऐतिहासिक फैसला:
दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने वर्ष 2019 में कुलदीप सिंह सेंगर को नाबालिग से बलात्कार का दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। अदालत ने साफ कहा कि दोषी विधायक एक पब्लिक सर्वेंट है और उसने जनता के भरोसे के साथ विश्वासघात किया है।
इसके अलावा अदालत ने पीड़िता को मुआवजा, सुरक्षा और दिल्ली में किराए के मकान की सुविधा देने का आदेश भी दिया था। पीड़िता के पिता की मौत के मामले में भी सेंगर को 10 साल की सजा सुनाई गई थी।
हाई कोर्ट से जमानत और विवाद:
अब करीब छह साल बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने कुलदीप सिंह सेंगर को जमानत दे दी है। कोर्ट ने तर्क दिया कि वह लंबे समय से जेल में है और उसकी अपील पर फैसला नहीं हो पाया है।
कोर्ट का यह कहना कि वो लंबे समय से जेल में है सुन कर हैरानी होती है, क्यों कि उम्र कैद का मतलब यही होता है कि जीवन भर जेल में रहना होगा।
बस यहीं से पूरा विवाद शुरू हो गया। सवाल यह उठता है कि अगर अपील लंबित रहने की जिम्मेदारी न्याय व्यवस्था की है, तो इसका फायदा दोषी को क्यों दिया गया?
पब्लिक सर्वेंट की परिभाषा पर बहस:
जमानत के दौरान यह दलील दी गई कि विधायक को “पब्लिक सर्वेंट” नहीं माना जा सकता। जबकि जब अपराध हुआ, उस समय कुलदीप सिंह सेंगर एक चुना हुआ विधायक था। इस तर्क ने कानून की व्याख्या और मंशा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। आज आम नागरिक खुद को इन नेताओं और रसूखदार लोगों के सामने ठगा हुआ महसूस कर रहा है
सीबीआई पहुंची सुप्रीम कोर्ट:
फैसला आते ही सीबीआई ने हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। एजेंसी का कहना है कि यह जमानत न सिर्फ गलत है, बल्कि समाज को गलत संदेश भी देती है। सीबीआई का तर्क है कि इतने गंभीर अपराध में दोषी व्यक्ति को कभी राहत नहीं मिलनी चाहिए।
पीड़िता आज भी डर में:
पीड़िता अब भी डर के साए में जी रही है। वह उन्नाव छोड़ चुकी है और दिल्ली में रह रही है। उसका कहना है कि ऐसा प्रभावशाली व्यक्ति दूरी से भी नुकसान पहुँचा सकता है। और यह बात हर कोई जानता है।
पहले पिता को पुलिस द्वारा मरवा दिया गया, कार का एक्सीडेंट करवाया गया, और अब इतने गंभीर मामले में ज़मानत मिल जाना।
बड़ा सवाल: क्या कानून सबके लिए बराबर है?
यह मामला एक बार फिर यह सवाल खड़ा करता है कि
क्या ताकतवर लोगों के लिए कानून अलग है?
क्या आम नागरिक को वही न्याय मिल पाता है जो रसूखदार को मिलता है?
उन्नाव रेप केस सिर्फ एक अपराध की कहानी नहीं, बल्कि यह देश की न्याय व्यवस्था के सामने खड़ा एक आईना है, जिसमें समाज को खुद को देखने की जरूरत है।
हम आशा करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट इस अपराधी को तुरंत फिर से जेल में बंद करे। और पूरे भारत के लोगों को यह अहसास कराए कि न्याय आज भी सबको बराबर मिलेगा।
बलात्कार, हत्या करने वाले अपराधियों को इस तरह से छोड़ देना दूसरे अपराधियों के हौसले बुलंद करता है, और देश के आम लोगों में डर का माहौल बनता है।
