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भारतीय संसद देश की सर्वोच्च विधायी
संस्था है। इसी लिए यह लोकतांत्रिक शासन का सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ मानी जाती है, क्योंकि यहीं पर देश के सभी कानून बनाए
जाते हैं, नीतियाँ तय होती हैं और आम जनता की
आवाज़ को प्रतिनिधियों के माध्यम से सुना जाता है। संसद भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था
का केंद्र है, जहाँ राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा होती
है और यहीं से सरकार की कार्यप्रणाली पर नज़र रखी जाती है। संविधान के अनुसार
भारतीय संसद तीन भागों से मिलकर बनती है
- राष्ट्रपति
- राज्य सभा और
- लोक सभा
1. संसद की संरचना:
राष्ट्रपति: राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग होता है, भले ही वह सदन की बैठक में सीधे भाग न ले। किसी भी तरह के कानून को लागू होने के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी आवश्यक होती है। संसद द्वारा पारित बिल तभी कानून बनता है जब राष्ट्रपति उसे स्वीकृति देते हैं।
(2) राज्य सभा (ऊपरी सदन):
राज्य सभा को सदन का स्थायी निकाय कहा
जाता है। इसमें कुल 250 सदस्यों की व्यवस्था होती है, जिनमें से 238 सदस्य राज्यों और केंद्र
शासित प्रदेशों की विधानसभाओं द्वारा चुने जाते हैं, जबकि 12 सदस्यों को राष्ट्रपति खुद मनोनीत करते हैं।
राज्य सभा का कार्यकाल स्थायी होता है, लेकिन इसके एक-तिहाई सदस्य हर दो वर्ष में सेवानिवृत्त हो जाते हैं। सबसे अहम बिंदु - राज्य सभा प्रमुख रूप से राज्यों के हितों का प्रतिनिधित्व करती है।
(3) लोक सभा (निचला सदन):
लोक सभा को जनता का सदन कहा जाता है, क्योंकि इसके सदस्य सीधे जनता द्वारा ही चुने जाते हैं। लोक सभा में अधिकतम 552 सदस्यों का प्रावधान है। इसका कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है, परंतु आवश्यकता पड़ने पर इसे कभी भी भंग भी किया जा सकता है। लोक सभा में सरकार बनती है और वही सरकार प्रधानमंत्री को चुनती है। सरकार लोक सभा के प्रति पूरी तरह से उत्तरदायी होती है।
संसद
के मुख्य कार्य क्या है?
(1) विधि निर्माण (Law Making):
संसद का सबसे प्रमुख कार्य कानून बनाना होता है। कोई भी बिल लोक सभा या राज्य सभा में पेश किया जा सकता है, फिर उस पर चर्चा होती है और गलती, कमी, या विरोध होने पर संशोधन किए जाते हैं। दोनों सदनों से पारित होकर राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद वह कानून बन जाता है।
(2) बजट और वित्तीय नियंत्रण:
लोक सभा में हर वर्ष बजट पेश किया जाता है। सरकार को कितनी राशि कहाँ खर्च करनी है, जैसे की शिक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य, विकास इत्यादि, यह संसद तय करती है। संसद सरकारी खर्च पर नियंत्रण रखती है और यह सुनिश्चित करती है कि जनता का पैसा सही जगह उपयोग हो रहा है की नहीं।
(3) कार्यपालिका पर नियंत्रण:
संसद का मुख्य कार्य सरकार पर नज़र रखना भी होता है। प्रश्नकाल, शून्यकाल, अविश्वास प्रस्ताव, चर्चा इन सबके माध्यम से सांसद सरकार से जवाब मांगते हैं। यह लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है कि सरकार संसद के प्रति जवाबदेह होती है, तभी पारदर्शिता बनी रहती है, यह एक लोकतांत्रिक देश के लिए सबसे ज़रूरी होता है।
(4) राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर
चर्चा:
“संसद” देश की सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, विदेश नीति, शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक मुद्दों पर बहस करती है। इससे सरकार की नीतियाँ और बेहतर बनती हैं इसी के माध्यम से जनता की समस्याओं का समाधान जाता है।
(5) संवैधानिक संशोधन:
भारतीय संविधान में बदलाव या संशोधन करने की शक्ति संसद के पास होती है। दोनों सदनों में विशेष बहुमत से संशोधन पारित होने के बाद ही कोई बदलाव संभव हो पाता है।
(6) राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और न्यायाधीशों का चुनाव/महाभियोग:
संसद और विधानसभाएँ मिलकर राष्ट्रपति
और उपराष्ट्रपति का चुनाव करती हैं। इसके अलावा संसद में आवश्यक परिस्थितियों में
जजों और राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव भी लाया जा सकता है।
भारतीय लोकतंत्र में संसद का महत्व क्या है ?
भारतीय संसद सिर्फ कानून बनाने वाली
संस्था नहीं है, आसान शब्दों में कहें तो यह लोकतंत्र
की आत्मा है। यहाँ आम जनता की भावना, जरूरतें, और समस्याएँ राष्ट्रीय मंच पर पहुंचती
हैं। संसद देश की दिशा तय करती है और सुनिश्चित करती है कि सरकार जनता के हितों
में काम करे। इसी लिए यह भारत की एकता, अखंडता
और संवैधानिक शासन का केंद्र है।
संसद का उद्देश्य केवल बहस करना नहीं है, बल्कि देश की नीतियों को जनहित के अनुसार ढालना भी है। इसलिए संसद का सक्रिय, पारदर्शी और जवाबदेह बने रहना देश की उन्नति और लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
अगर आप भारतीय संविधान और उसके महत्त्व को गहराई से समझना चाहते हैं तो हमारी इन लेखों को ज़रूर पढ़िए |