British East India Company पर 20 महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी | British East India Company 20 Important MCQ Questions in Hindi

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British East India Company का इतिहास और भूमिका

परिचय:

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी एक व्यापारिक कंपनी थी, जिसने शुरूआती दौर में भारत में अपना व्यापार शुरू किया और धीरे-धीरे बड़ी ही चालाकी से राजनीतिक व सैन्य शक्ति हासिल करके पूरे देश पर नियंत्रण स्थापित किया। 1600 में इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ प्रथम द्वारा इसे विशेषाधिकार प्राप्त पत्र (Charter) दिया गया था। समय के साथ कंपनी ने भारतीय उपमहाद्वीप को अपने आर्थिक, राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचे में पूरी तरह से जकड़ लिया था।

 

1. स्थापना और उद्देश्य:

31 दिसंबर 1600 को भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का गठन हुआ था।

मुख्य उद्देश्य भारत और पूर्वी एशियाई देशों के साथ मसाला, रेशम, चाय और कपास का व्यापार करना था।

यह एक निजी व्यापारिक संस्था थी, लेकिन इसे ब्रिटिश सरकार का समर्थन हमेशा मिलता रहा।

 

2. भारत में आगमन:

साल 1608 में कंपनी का पहला जहाज़ सुरत (गुजरात) आया था।

साल 1612 में मुगल सम्राट जहाँगीर से व्यापार की अनुमति मिली थी।

धीरे-धीरे कंपनी ने अपने कारखाने (Factories) और व्यापारिक केंद्र स्थापित किए थे।

 

3. राजनीतिक शक्ति की शुरुआत:

साल 1757 की प्लासी की लड़ाई कंपनी के लिए राजनीतिक शक्ति का द्वार साबित हुई थी।

साल 1764 की बक्सर की लड़ाई ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा पर कंपनी का पूर्ण अधिकार स्थापित कर दिया था, यही संमय था जब कंपनी के अत्याचार बढ़ते चले गए।

साल 1765 में मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय से दीवानी अधिकार प्राप्त हुए थे, जिससे कंपनी राजस्व वसूली करने लगी थी।

 

4. प्रशासनिक और आर्थिक नियंत्रण:

कंपनी ने भारतीय प्रशासन में सुधार के नाम पर अनेक कानून बनाए थे।

भारतीय उद्योग और हस्तशिल्प को नष्ट करके ब्रिटिश उद्योगों को बढ़ावा दिया गया था।

लगान और कर व्यवस्था में बदलाव से किसान और आम जनता अत्यधिक पीड़ित हुई, लोगों से उनके अधिकारों को छीना जाने लगा।

 

5. कंपनी राज का अंत:

साल 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया।

1858 के भारतीय शासन अधिनियम के तहत भारत का नियंत्रण सीधे ब्रिटिश क्राउन के हाथों में चला गया था।

 

निष्कर्ष:

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी केवल एक व्यापारिक संस्था नहीं थी, बल्कि वह भारत की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक संरचना को गहराई से प्रभावित करने वाली शक्ति थी। उसके शासन ने भारत को आर्थिक रूप से कमजोर कर दिया था, लेकिन इसी ने स्वतंत्रता संग्राम की चेतना को भी जन्म भी दिया था। यह भारतीय इतिहास का अत्यंत महत्वपूर्ण और काला अध्याय है।



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