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हुमायूँ
जीवन, शासन, संघर्ष और मुगल साम्राज्य में योगदान
हुमायूँ भारतीय इतिहास में एक ऐसे मुगल
बादशाह थे जिनका पूरा जीवन संघर्ष, हार, जीत और रोमांच से भरा हुआ था। वे मुगल
साम्राज्य के संस्थापक बाबर के बड़े पुत्र थे और उनकी गिनती उन शासकों में होती है
जिन्होंने कठिन परिस्थितियों के बावजूद अपना साम्राज्य फिर से स्थापित करने में
सफलता प्राप्त की। इस लेख में हम हुमायूँ के जीवन, शासनकाल, संघर्षों और उनके प्रमुख योगदानों को
सरल शब्दों में समझेंगे, और साथ ही हुमायूँ पर आधारित MCQ को हल करके अपने ज्ञान
की जांच करेंगे।
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हुमायूँ का प्रारंभिक जीवन:
हुमायूँ का जन्म 6 मार्च 1508 को काबुल में हुआ था। हुमायूँ पूरा नाम “नसीरुद्दीन मोहम्मद हुमायूँ”
था। हुमायूँ को बचपन से ही पढ़ाई, ज्योतिष
और कला में रूचि रही है। वे साहसी और दयालु स्वभाव के थे, वह राजनीतिक दृष्टि से बाबर की तरह
दृढ़ नहीं थे।
1526 में बाबर ने भारत में मुगल राज स्थापित की थी और अपने पुत्र हुमायूँ को कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ दीं थीं। बाबर की मृत्यु के बाद 1530 में हुमायूँ केवल 22 वर्ष की उम्र में भारत की सल्तनत को सम्न्हालने लगे थे।
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हुमायूँ के शासनकाल की चुनौतियाँ क्या
क्या रहीं?
हुमायूँ का पूरा शासनकाल चुनौतियों और
संघर्षों से भरा हुआ था। उन्हें शुरुआत से ही कई विरोधियों का सामना करना पड़ा था, जिनमें सबसे बड़ा नाम अफगान शासक शेर
शाह सूरी का है।
इसके अलावा, हुमायूँ के अपने भाइयों कामरान, हिदर और असकरी ने भी कई बार विद्रोह किया था, जिससे साम्राज्य कमजोर पड़ रहा था। हुमायूँ की कुछ प्रशासनिक कमजोरियों के कारण भी मुगल शासन पर संकट आया था।
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हुमायूँ का शेर शाह सूरी से संघर्ष और
पराजय:
1538 से 1540 के बीच हुमायूँ और शेर शाह सूरी के बीच कई युद्ध हुए थे।
1540 में कन्नौज की लड़ाई (Battle of Kannauj) में हुमायूँ को भारी नुक्सान का सामना
करना पड़ा था। इस हार के बाद हुमायूँ को भारत छोड़ना पड़ा और वे लगभग 15 वर्षों तक निर्वासन (exile) में रहे थे।
इस दौरान हुमायूँ सिंध, राजस्थान और ईरान में भटकते रहे। ईरान के शाह तहमास्प ने हुमायूँ की मदद की थी और सेना उपलब्ध कराई थी। इसी सहायता के बल पर हुमायूँ ने दोबारा सत्ता हासिल करने की योजना बनाई।
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हुमायूँ की भारत में पुनः आगमन और
सत्ता की वापसी:
1555 में हुमायूँ एक मजबूत सेना के साथ भारत
लौट आए। इस समय शेर शाह सूरी की मृत्यु हो चुकी थी और सूरी वंश बहोत कमजोर पड़ गया
था।
हुमायूँ ने एक-एक कर सभी क्षेत्रों को
जीत लिया और दिल्ली तथा आगरा पर फिर से कब्ज़ा कर लिया। इस तरह 1555 में मुगल शासन भारत में दोबारा
स्थापित हो गया।
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हुमायूँ का योगदान और उपलब्धियाँ:
हुमायूँ का शासनकाल उतना मजबूत या लंबा
नहीं रहा है, फिर भी उनके महत्वपूर्ण योगदान इतिहास
में दर्ज हैं जो की इस प्रकार है:
उन्होंने मुगल साम्राज्य को भारत में
दोबारा स्थापित किया।
उन्होंने कला, साहित्य और वास्तुकला को बढ़ावा दिया
है।
फारसी संस्कृति को भारत में
प्रोत्साहित किया, जिससे मुगल संस्कृति मजबूत हुई।
उनका मकबरा दिल्ली में स्थित है, जिसे मुगल वास्तुकला का एक उत्कृष्ट
उदाहरण माना जाता है। यही मकबरा आगे चलकर ताजमहल जैसी भव्य
इमारतों के लिए प्रेरणा बना।
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हुमायूँ की मृत्यु कब और कैसे हुई?
हुमायूँ का शासन पुनः स्थापित तो हो
गया था, लेकिन वे लंबे समय तक शासन नहीं कर
सके।
1556 में शेर-ए-इस्लामी लाइब्रेरी में
सीढ़ियों से गिरने के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी। उस समय वह केवल 47 वर्ष के थे।
उनकी मृत्यु के बाद उनका पुत्र अकबर जो
मुगल साम्राज्य का बादशाह बना और उसने मुगल साम्राज्य को नई ऊँचाईयों तक पहुँचाया।
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निष्कर्ष:
हुमायूँ का पूरा जीवन उतार-चढ़ावों से
भरा हुआ था। वे एक दयालु,
विद्वान और कलाप्रिय शासक थे, शयेद इसी लिए राजनीतिक रणनीति में उतने
सक्षम नहीं थे। इसके बावजूद हुमायूँ ने हार नहीं मानी और अंत में अपना खोया हुआ
साम्राज्य वापस हासिल किया था।
भारतीय इतिहास में हुमायूँ को एक संघर्षशील मुगल बादशाह के रूप में याद किया जाता है, जिसने विपरीत परिस्थितियों में भी अपने साहस और दृढ़ता का परिचय दिया है।
