Émile Durkheim: जीवन, विचार, सिद्धांत और समाजशास्त्र में योगदान

Emile Durkheim, Sociologist,
एमिल दुर्खीम और समाजशास्त्र 

🟢 परिचय: एमिल दुर्खीम (Émile Durkheim) आधुनिक समाजशास्त्र (Modern Sociology) के सबसे महत्वपूर्ण और आधारभूत स्तंभों में से एक माने जाते हैं। इसी लिए  उन्हें Father of Modern Sociology और Founder of Functionalism कहा जाता है। समाजशास्त्र को एक वैज्ञानिक और स्वतंत्र अनुशासन के रूप में स्थापित करने का श्रेय दुर्खीम को ही जाता है क्यूंकि... उन्होंने यह साबित किया कि सामाजिक घटनाओं (Social Facts) को वैज्ञानिक तरीकों से समझा जा सकता है।

♻️ यह लेख एमिल दुर्खीम के जीवन, उनके प्रमुख सिद्धांतों, समाजशास्त्र में उनके योगदान, महत्वपूर्ण पुस्तकों और उनकी विचारधारा की वर्तमान प्रासंगिकता को विस्तार से समझने में आपकी मदद करेगी।

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🟢 1. एमिल दुर्खीम का जीवन परिचय (Biography of Émile Durkheim)

पूरा नाम: David Émile Durkheim

जन्म: 15 अप्रैल 1858, एपिनाल, फ्रांस

मृत्यु: 15 नवंबर 1917

karl marx की तरह Durkheim भी एक यहूदी परिवार में पैदा हुए थे।

प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने पेरिस की प्रसिद्ध संस्था École Normale Supérieure में दाखिला लिया। ऐसा माना जाता है की यहीं से उनके बौद्धिक जीवन की शुरुआत हुई।

दुर्खीम की दिलचस्पी  हमेशा से सामाजिक समस्याओं, समाज व्यवस्था और सामूहिक व्यवहार जैसे मुद्दों में  था। इसी रुचि ने उन्हें समाजशास्त्र की गहराई में उतरने और इसे एक स्वतंत्र तथा वैज्ञानिक विषय के रूप में दुनिया के सामने पेश करने की प्रेरणा दी थी।

उनके करियर की मुख्य उपलब्धियाँ इस प्रकार है:

👉1887 में University of Bordeaux में पहली आधिकारिक समाजशास्त्र की कुर्सी (Sociology Chair) स्थापित की गई थी

👉1893: में The Division of Labour in Society प्रकाशित हुई

👉1895: में The Rules of Sociological Method प्रकाशित हुई

👉1897: में Suicide: A Study in Sociology प्रकाशित हुई

👉1912: में The Elementary Forms of Religious Life प्रकाशित हुई

🔹दुर्खीम का पूरा जीवन समाज को समझने, सामाजिक एकता को परिभाषित करने और सामाजिक व्यवहार का वैज्ञानिक विश्लेषण करने में समर्पित  करने में गुज़र गया।

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🟢 2. समाजशास्त्र में एमिल दुर्खीम का क्या महत्व है? 

दुर्खीम को इस लिए  समाजशास्त्र में सबसे अधिक याद किया जाता है क्योंकि:

1. उन्होंने समाजशास्त्र को वैज्ञानिक पद्धति दी है

2. सामाजिक तथ्यों (Social Facts) का सिद्धांत दिया है

3. आत्महत्या (Suicide) जैसे विषय का वैज्ञानिक अध्ययन किया है

4. धर्म को सामाजिक संस्था के रूप में समझाया है

5. समाज में श्रम-विभाजन और एकता के प्रकार बताए हैं

6. उन्होंने कार्यात्मकता (Functionalism) की नींव रखी है अपने शोध में उन्होंने यह माना कि समाज व्यक्ति से बड़ा है और समाज ही व्यक्ति के व्यवहार को गहराई से प्रभावित करता है।

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🟢 3. सामाजिक तथ्य (Social Facts) 

दुर्खीम की सबसे महत्वपूर्ण अवधारणा में से एक है दुर्खीम के अनुसार, सामाजिक तथ्य वे सभी बाहरी और नियंत्रक तत्व हैं जो व्यक्ति के व्यवहार को पूरी तरह से प्रभावित करते हैं।

उदाहरण के तौर पर: कानून, परंपराएँ, धर्म, नैतिकता, भाषा, रीति-रिवाज और सामाजिक मूल्य।

दुर्खीम कहते हैं कि सामाजिक तथ्यों का अध्ययन केवल वैज्ञानिक तरीकों से ही किया जाना चाहिए।

इसी लिए यह विचार समाजशास्त्र को अन्य सामाजिक विज्ञानों से अलग करता है।

🔹सामाजिक तथ्य की दो मुख्य विशेषताएँ हैं

1. बाहरी होना (Externality) यह व्यक्ति के बाहर से उस पर लगातार प्रभाव डालता है। जैसे की...

कैसे कपडे पहेन्ने हैं, कैसे चलना है, लोगों के सामने कैसे रहना हैं, बड़ों और बच्चो के साथ कैसा व्योहार करना है|

2. नियंत्रणकारी शक्ति (Constraint) यह व्यक्ति को पालन करने के लिए बाध्य करता है। जैसे की... साफ़ सफाई का ख्याल रखना है, कानून का पालन करना हैं, देश, और धर्म का के सम्मान को कैसे बनाए रखना है| इस अवधारणा पर आधारित शोध आज भी समाजशास्त्र में सबसे मजबूत आधार माना जाता है।

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🟢 4. श्रम-विभाजन और सामाजिक एकता (Division of Labour & Social Solidarity)

दुर्खीम ने अपनी पुस्तक "The Division of Labour in Society" (1893) में सामाजिक एकता के दो प्रकार बताए हैं:

1. यांत्रिक एकता (Mechanical Solidarity) यह पारंपरिक और छोटे समाजों में दिखाई देती है। इसके अनुसार लोग समान कार्य करते हैं। सबके विचार, मूल्य और जीवन शैली लगभग समान होती है। इस के कारण सामाजिक नियंत्रण मजबूत होता है।

2. जैविक एकता (Organic Solidarity) यह आधुनिक और जटिल समाजों में पाई जाती है। इसके अनुसार लोग विभिन्न प्रकार के कार्यों में विशेषज्ञ होते हैं। इसके अनुसार परस्पर निर्भरता बढ़ जाती है। पूरा समाज विविधता के साथ चलता रहता  है।

दुर्खीम का मानना था कि की जैसे-जैसे समाज आधुनिक होता है,  वैसे-वैसे जैविक एकता मजबूत होती जाती है।

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🟢 5. आत्महत्या का सिद्धांत (Durkheim’s Theory of Suicide)

यह दुर्खीम की सबसे प्रभावशाली और चर्चित कृति है। उन्होंने आत्महत्या को सिर्फ व्यक्तिगत मानसिक समस्या नहीं बल्कि सामाजिक स्थितियों का परिणाम माना है।

इसके लिए दुर्खीम ने आत्महत्या को चार प्रकारों में बांटा:

🔹1. आत्मकेंद्रित आत्महत्या (Egoistic Suicide) परिवार/समुदाय के साथ जुड़ाव कम हो जाने पर, अकेलापन और सामाजिक अलगाव होने पर उदाहरण: जब किसी वेयक्ति को ऐसा लगने लगता है की उसके परिवार में उसकी कोई अहमियत नहीं रही, आस पास के लोगों के  व्योहार को देख कर उसे अकेलापन महसूस होने लगता है ता वो व्येक्ती गलत कदम उठा लेटा है

🔹2. परोपकारी आत्महत्या (Altruistic Suicide) समाज के प्रति अत्यधिक कर्तव्य भावना, जैसे सैनिक, धार्मिक बलिदान इसमें वेयक्ति अपने देश और धर्म के लिए अपने जीवन को समाप्त कर लेता है, उदाहरण: किसी सैनिक को पता होता है की अगर वह आगे बढ़ेगा तो उसकी जान चली जायेगी फिर भी वो आगे बढ़ता है क्यूँ की उस समय उसे अपने बाकी साथियों की जान की परवाह होती है, उसे अपने देश की सीमा की रक्षा करनी होती है, ऐसे में वह खुद अपनी जान कुर्बान कर के साथी सैनिकों और देश की रक्षा के लिए परोपकारी आत्महत्या "Altruistic Suicide" कर लेता है|

🔹3. अराजक आत्महत्या (Anomic Suicide) आर्थिक और सामाजिक अस्थिरता अचानक बदलाव: जैसे आर्थिक मंदी, बेरोजगारी उदाहरण: कारोबार में बड़ा नुक्सान होने के कारण व्योपारी समझ नहीं पाता की इस संकट से कैसे निकला जाए, कर्जदारों का डर, परिवार को चलाने की चिंताओं के कारण उठाये जाने वाले गलत कदम को ही अराजक आत्महत्या कहा गया है|

🔹4. नियतात्मक आत्महत्या (Fatalistic Suicide) अत्यधिक सामाजिक दमन जैसे जेल, अत्यधिक कठोर नियम

उदाहरण:

🔸1. अगर किसी वेयक्ति पर समाज के बाहुबली लोग अत्याचार करते हैं और उसकी सहायता करने कोई नहीं आता, तब वो वेयक्ति जीवन से हार मान कर नियतात्मक आत्महत्या कर लेता है|

🔸2. किसी वेयक्ति को जेल में बंद कर दिया जाए और वहां पर उसे लगातार प्रताड़ित किया जाए भले ही वो खुद अपराधी हो या न हो ऐसी प्रस्तिथि में वह नियतात्मक आत्महत्या कर सकता है|

दुर्खीम का यह शोध आज भी आत्महत्या विषयक अध्ययन का आधार है।

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🟢 6. धर्म का समाजशास्त्र (Sociology of Religion)

दुर्खीम ने धर्म को  सामाजिक एकता का स्रोत बताया है। उन्होंने अपनी पुस्तक "The Elementary Forms of Religious Life" (1912) में बताया है की... धर्म के दो मूल तत्व हैं

🔹1. पवित्र (Sacred)

🔹2. अपवित्र/सामान्य (Profane)

♦️धर्म समाज को जोड़ता है और सामूहिक चेतना (Collective Conscience) को मजबूत करता है।

♻️ टोटेमवाद (Totemism) दुर्खीम ने ऑस्ट्रेलियाई जनजातियों का  गहरा अध्ययन किया, उन्होंने कहा कि टोटेम दरअसल "समाज का प्रतीक" है। उनका मानना था कि धर्म एक सामाजिक संस्था है और इसका उद्देश्य समाज में मूल्यों और एकता को बनाए रखना है, धर्म के कारण लोग एक दुसरे से जुड़े रहते हैं।

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🟢 7. सामूहिक चेतना (Collective Conscience)

सामूहिक चेतना वह साझा विश्वास, मूल्य और नैतिकता है जिसे पूरा समाज मानता और स्वीकार करता है।

यह समाज को एक-दूसरे से जोड़े रखती है।

उदाहरण:

👉कानून: समाज में किस प्रकार रहना है, क्या सही है और क्या गलत है, किस व्योहार के कारण सज़ा मिएगी इत्यादि।

👉नैतिक नियम: बड़ों का आदर सम्मान करना. बच्चों से प्यार करना, हर नागरिक की ख़ुशी और सुरक्षा का ख़याल रखना।

👉परंपराएँ: अपने सामाजिक और भूगोलिक क्षेत्र के आधार पर कार्य करना, धर्म का पालन करना इत्यादि। 👉त्यौहार: सबके साथ मिल जुल कर ख़ुशी में शामिल होना।

दुर्खीम कहते हैं कि किसी समाज की सामूहिक चेतना जितनी मजबूत होगी, वह समाज उतना ही एकजुट और मज़बूत होगा।

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🟢 8. शिक्षा का समाजशास्त्र (Educational Sociology)

दुर्खीम का मानना था कि शिक्षा समाज को बहतर आकार देती है। इसे साबित करने के लिए उन्होंने कहा: शिक्षा व्यक्ति को समाज के नियम सिखाती है, उसके हाव भाव और व्योहार को नियंत्रित करती है।

नैतिकता और अनुशासन विकसित करती है, क्या सही है और क्या गलत है को समझने की समझ प्रदान करती है। समाज की निरंतरता बनाए रखती है, हर किसी को एक समान सम्मान देती है।

इसी लिए उन्होंने शिक्षा को समाज का "नियंत्रण तंत्र" माना है।

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🟢 9. कार्यात्मकतावाद (Functionalism) का आधार 

दुर्खीम को ही आधुनिक Functionalism का संस्थापक माना जाता है। क्यूंकि... उन्होंने समाज को "एक जीवित जैविक तंत्र (Organic System)" की तरह प्रस्तुत किया है।

👉 मुख्य बिंदु:

समाज कई हिस्सों से मिलकर बना है, परिवार, पड़ोसी, जाती, धर्म, देश। हर संस्था समाज की स्थिरता में अपनी भूमिका निभाती  है।

अगर कोई संस्था कमजोर हो जाए, तो असंतुलन पैदा होता है, और समाज के बिखरने का खतरा बन जाता है।

🔹दुर्खीम का यह सिद्धांत आज भी समाजशास्त्र और एंथ्रोपोलॉजी में मुख्य आधार माना जाता है।

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🟢 10. एमिल दुर्खीम की प्रमुख पुस्तकें

1. The Division of Labour in Society (1893) 

2. The Rules of Sociological Method (1895) 

3. Suicide: A Study in Sociology (1897)

4. The Elementary Forms of Religious Life (1912)

🔸ये चारों पुस्तकें समाजशास्त्र की दुनिया में अमर मानी जाती हैं।

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🟢 11. आधुनिक युग में दुर्खीम की प्रासंगिकता क्या है? 

दुर्खीम के विचार आज भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने उनके समय में थे।

आज के समाज में उनकी अवधारणाएँ क्यों उपयोगी हैं? 🔹आज के समय सामाजिक एकता की जरूरत बढ़ रही है, क्यूंकि...

👉हर समाज दसरे समाज से अलग हो रहा है।

👉सामाजिक तनाव, अकेलापन और आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं, तकनीक के इस युग में हर वेयक्ति अकेलापन महसूस करने लगा है।

👉धर्म और नैतिकता पर चर्चा आज भी जारी है, यह चर्चा कई बार अलगाव का रूप ले लेती है।

👉वैश्वीकरण से श्रम-विभाजन बड़ा बदलाव ला रहा है, गरीबों और प्रवासी मजदूरों की स्तथी अब भी सुधर नहीं पाई है।

👉अभी भी शिक्षा समाज को बदलने का सबसे बड़ा माध्यम बनी हुई है, वेयक्ति शिक्षा के माध्यम से ही खुद को और अपने समाज को बदल सकता है।

🔹इसलिए आज भी दुर्खीम का समाजशास्त्र आधुनिक समाज को समझने के लिए अनिवार्य है।

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🟢 12. दुर्खीम की आलोचनाएँ इस प्रकार है (Criticisms)

दुर्खीम की कई अवधारणाएँ महत्वपूर्ण होते हुए भी आलोचनाओं का विषय रही हैं:

क्यूंकि...

🔹दुर्खीम समाज को व्यक्ति से ज्यादा महत्व देते हैं।

🔹दुर्खीम का सामाजिक नियंत्रण पर अत्यधिक जोर रहा है।

🔹दुर्खीम ने धर्म की व्याख्या को बहुत सरल तरीके से प्रस्तुत किया है।

🔹पश्चिमी समाज को केंद्र मानने की प्रवृत्ति के कारण विश्व के बाकी समाजों को कम देखा या अनदेखा करने आरोप भी लगता है।

🔸इन सब के बावजूद भी, उनका योगदान आज भी सबसे ऊँचा माना जाता है।

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🟢 निष्कर्ष (Conclusion):

एमिल दुर्खीम समाजशास्त्र के सबसे महत्वपूर्ण विचारकों में से हैं। उन्होंने समाजशास्त्र को एक वैज्ञानिक विषय के रूप में स्थापित किया है।

उन्होंने हमें सामाजिक तथ्यों, आत्महत्या, धर्म, श्रम-विभाजन और सामाजिक एकता की अवधारणाओं के माध्यम से समाज को समझने का ढांचा प्रदान किया। दुर्खीम की रचनाएँ और सिद्धांत आज भी अकादमिक जगत, शोध और सामाजिक नीतियों में उपयोग किए जा रहे हैं।

दुर्खीम का योगदान न केवल 20वीं सदी के समाजशास्त्र के लिए बल्कि आधुनिक वैश्विक समाज को समझने के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

हमने आपके लिए "एमिल दुर्खीम" पर आधारित 20 प्रश्नों का MCQ QUIZ तैयार किया है एक बार अपने सामान्य ज्ञान को ज़रूर परखिये और देखिये की आप एमिल दुर्खीम के बारे में कितना जानते हैं Emile Durkheim MCQs in Hindi

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